पृथ्वी स्वच्छ सुंदर
यह भूमि
माटी की
सोंधी गंध
बढ़ाती सागर की बेचैनी।
मीठे पानी की स्मृतियों में
थमने-थमने को
जीवन का संगीत।
यह सदाबहार वन
दहाड़ते शेर,चहचहाते पखेरू
मगन मन नाचते मोर।
झाड़ी पत्ते, हरी चुनर धर इतराते
बादल बंजारे बन आते।
झुक जाती धरा
अलग-अलग श्रृंगार से।
वृक्ष पवन संग
इतराते, लहराते
माटी से रिश्ता गहरा
आकाश से घनिष्ठ मित्रता।
हर श्वास ऋणी इनकी
हर जीव के यह वाहक।